Friday, December 19, 2008

GAZAL

क्या मैं रस्ता भूल गया हूं
उठता सूरज सोच रह है
क्या मैं रोज यहीं आता था
क्या वह वही प्यारी दुनिया है

मुर्दों के बाजार सजे हैं
लाशों का खलियान लगा है
खेतों के लब सूख रहे हैं
दरिया का चेहरा उतरा है

मैं इक टूटे से मंदिर में
बरगद की इक जड़ पर बैठा
जाने कब से सोच रहा हूं
वह बच्चा अब जागा होगा

माँ कैसे बहलाती होगी
माँ कैसे समझाती होगी

2 comments:

  1. माँ कैसे बहलाती होगी
    माँ कैसे समझाती होगी

    वाह जी वाह आनन्‍द आ गया

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  2. क्या मैं रस्ता भूल गया हूं
    उठता सूरज सोच रह है
    क्या मैं रोज यहीं आता था
    क्या वह वही प्यारी दुनिया है

    भावपूर्ण .. आनन्‍द आ गया.

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