Wednesday, November 26, 2008

तूफ़ान से पहले

राही मासूम रज़ा

जो जख़्म है दिल में वह दिखाया नहीं जाता
आंखों से लहू खुल के बहाया नहीं जाता
क्या सोच रहे है यह बताया नहीं जाता
राखी के लिए हाथ बढ़ाया नहीं जाता
अब आंखों के पानी के सिवा कुछ भी नहीं है
एहसास-ए-गुलामी के सिवा कुछ भी नहीं है

2 comments:

  1. राही साहब की गजल पढवाने का शुक्रिया। आशा है आपके ब्‍लॉग पर उनकी अन्‍य रचनाऍं भी पढने को मिलती रहेंगी।

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  2. firoz ji

    rahi ji ki ye lines bahut acchi hai
    kab likhi hongi unhone ye nazm , kya angrezo se ladhai ke dauran ?

    अब आंखों के पानी के सिवा कुछ भी नहीं है
    एहसास-ए-गुलामी के सिवा कुछ भी नहीं है

    vijay

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