राही मासूम रज़ा का साहित्य ( RAHI MASOOM RAZA )
Saturday, January 31, 2009
GAZAL
रो देते हैं जब
हाथ
बनाते हैं निवाले
हर सिम्त (दिशा) हैं सरगोशियाँ ताने हुए भाले
ख्वाबों में भी चलते हैं फिरंगी के रिसाले
केंचुल से निकलने को तड़प उठते हैं काले
बिखरे हैं इधर और उधर ढँूढ रहे हैं
हम
शाम-ए-गुलामी
की सहर ढँूढ रहे हैं
1 comment:
परमजीत सिहँ बाली
January 31, 2009 at 10:58 PM
बहुत बढिया गज़ल प्रेषित की है।
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
‹
›
Home
View web version
बहुत बढिया गज़ल प्रेषित की है।
ReplyDelete