Monday, January 5, 2009

वतन के लिए उट्ठो

बंगाल के हारे हुए जादू की कसम है
पंजाब के टूटे हुए बाजू की कसम है
मैसूर के उलझे हुए गेसू (केश) की कसम है
दिल्ली की सिसकती हुई खुशबू की कसम है
हर गोशे से तज+ईन (श्रृंगार) चमन के लिए उट्ठो
मजहब के लिए उठो, वतन के लिए उट्ठो

कह दो कि बस और न समझाइये हमको
यह आपकी तहजीब नहीं चाहिए हमको
हम खूब समझते हैं तिजारत की नजर को
गाजा (धर्म स्थान) की जरूरत नहीं काशी की सहर को

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