इस घर में अंधेरा है कि तुम रोशनी बेचो
चोरी भी करो घूम के पहरा भी तुम्हीं दो
दो जहर भी तिर्याक (विपनाशक) की दुकान भी खोलो
जिस राह से आए हो उसी राह से जाओ
नफरत कही करोगे न मुहब्बत ही करोगे
ताजिर (व्यापारी) हो बहरहाल तिजारत (व्यापार) ही करोगे
हवा के दोश पर यह बात चल पड़ी
हर एक जर्रा चौंक उठा यह क्या हुआ
हर इक किवाड़ कोई खटखटा गया
हर एक दिल यह बोल उठा बुरा हुआ
sir, rahi masoom raja ke sahitya ko aur vishleshan karne ki jarurat hai ! tabhi koi sahi baat nikal kar samne aayegi !
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआशुतोष जी आपको जानकारी अधूरी है. राही ने जितनी बेबाक टिप्पणी की है उतनी अन्य लेखको में कम ही मिलती है. पहले उनका परिचय देखे और उनकी रचनाओं को पढ़े. तब टिप्पणी दे. राही के बारे में आप कुछ नहीं जानते है.
ReplyDelete