Thursday, January 1, 2009

GAZAL

निकली ही जाती है पैरों के जो नीचे से जमीं
उउर आये हैं जमीनों पे यह अफलाके-नशीं (आसमान पर रहने वाली)
फसले-गुल (फूलों की फसल) ही गरज है न चमन से मतलब
काम मजहब से है इनको, न वतन से मतलब
बात बिगड़ेगी तो हैरत के शरीक आप भी हैं
फस्ल काटेंगे तो मेहनत के शरीक आप भी हैं
जो मसर्रत (आनन्द) हो मसर्रत के शरीक आप भी हैं
इश्क कीजे तो मुहब्बत के शरीक आप भी हैं
जाहिलों से वह भला बोले भी तो क्या बोले
उनकी महफिल हो तो कुरआन जबाँ भी खोले
बिगड़े यह लोक, वह परलोक, अगर यह न रहें
गंग गीतमा का हर श्लोक,अगर यह न रहें

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