Sunday, January 11, 2009

GAZAL

बस इक चिराग जो बाकी व सद (शत-प्रतिशत) खराबी है
वह एक चिराग है मर्हूने बज्मे जुल्मते (भयानक अंधेरी रात के हाथों गिरवीं) शव
निगाहें आईना हैरान, दस्ते शाना (प्रतापी हाथ) है शल (अपाहिज)
उलझ चुकी है वह जुल्फे-दाजराहे तलब (सँवारे हुए काले बाल)

तुलूए मेहृ तो पाबन्दे इन्तजार नहीं
जुनूं ही चाहे तो तै हो यह वादिए वहशत (डरावनी घाटी)
नहीं तो हद्दे नजर तक कहीं बहार नहीं

हयात सुर्खिये याकूत (एक प्रसिद्ध रत्न) की नहीं कायल
हयात बहते हुए खून को सुर्ख मानती है
ख्याल आये तो सीने में दिल धड़क उठे
हयात सिर्फ यही इक जबान जानती है

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