Wednesday, February 11, 2009

GAZAL

हम में का हरएक शख्स, हरएक दाग़ सहेगा
मैदान में कुछ कोई सुनेगा न कहेगा
दुश्मन है वह, जो भी सफ़े-दुश्मन (शत्रु की पंक्ति) में रहेगा
दुश्मन ही का खँू बन के लहू उसका बहेगा
जिस गाँव में हम हैं, कभी तुम भी तो यहीं थे
यह बाद में मत कहना कि आगाह नहीं थे

1 comment:

Unknown said...

हम में का हरएक शख्स, हरएक दाग़ सहेगा
मैदान में कुछ कोई सुनेगा न कहेगा
खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू कराने के िलए बधाई