जब बात वतन की है तो क्या भाई भतीजा
अंग्रेजों के जो साथ हैं उनसे नहीं रिश्ता
मजहब को भी है बात नहीं कोई तमाशा
अंग्रेजों की फौजों से निकल आये तो अच्छा
रोके से न मानेगी जो एक बार चलेगी
हम रन की तरफ जाते हैं तलवार चलेगी
हम में का हरएक शख्स, हरएक दाग़ सहेगा
मैदान में कुछ कोई सुनेगा न कहेगा
दुश्मन है वह, जो भी सफ़े-दुश्मन (शत्रु की पंक्ति) में रहेगा
दुश्मन ही का खँू बन के लहू उसका बहेगा
जिस गाँव में हम हैं, कभी तुम भी तो यहीं थे
यह बाद में मत कहना कि आगाह नहीं थे
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जब बात वतन की है तो क्या भाई भतीजा
अंग्रेजों के जो साथ हैं उनसे नहीं रिश्ता
मजहब को भी है बात नहीं कोई तमाशा
अंग्रेजों की फौजों से निकल आये तो अच्छा
रोके से न मानेगी जो एक बार चलेगी
हम रन की तरफ जाते हैं तलवार चलेगी
वाह क्या बात कही है ...बहुत खूब
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