Saturday, March 28, 2009

लोगों के बीच में राही मासूम रजा आज भी जिन्दा हैं

राही मासूम रजा की १७वीं पुण्यतिथि के अवसर पर वाङ्मय पत्रिका, लिबर्टी होम्स में संगोष्ठी का आयोजन किया। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता डॉ० प्रेमकुमार ने की। इस संगोष्ठी में राही मासूम रजा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला गया। मुख्य वक्ता डॉ० प्रेमकुमार ने कहा कि इस पुण्यतिथि पर राही मासूम पर चर्चा ही बता रहा है कि उनका काम कितना महत्त्वपूर्ण है। प्रेमकुमार ने उनके साहित्य में व्यक्त इंसानियत को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि आज का युग बौनों का युग है जब लोगों को साम्प्रदायिकता व विद्वेष से लड़ने का समय है। उस समय उनसे ही समझौता कर लिया जबकि राही का व्यक्तित्व उन समझौतावादी बौने लोगों का विरोध करता है। राही के एक संस्मरण की चर्चा करते हुए बताया कि अपने बेटे की शादी हिन्दू लड़की से इस शर्त पर की, कि वह अपना धर्म परिवर्तन नहीं करेगी। इस प्रकार के विचार आज के बड़े-बड़े हिन्दू व मुस्लिम सेकुलर कहे जाने वाले लोगों के यहाँ नहीं मिलेगी। उन्होंने बताया कि राही का जुड़ाव जमीन की गहराई से रहा है। राही ने साहित्य में किसी सम्प्रदाय विशेष की, क्षेत्र विशेष की या भाषा विशेष को मुख्य आधार नहीं बनाया है, बल्कि उन्होंने साहित्य में पूरी तरह से भारतीयता की बात की। जहाँ एक भारत व उसके सेकुलर गंगा-जमुना तहजीब मुख्य है। डॉ० प्रेमकुमार ने उनके साहित्य लेखन के अतिरिक्त फ़िल्मों एवं सीरियल में किये गये कामों का भी उल्लेख किया। एक उल्लेखनीय तथ्य की ओर संकेत करते हुए बताया कि जो काम तुलसीदास ने रामकथा को स्थापित व पुनर्जीवित करने में किया है, ठीक वही काम राही ने महाभारत की पटकथा को लिखकर किया है।
इस संगोष्ठी में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के कई छात्र उपस्थित थे। जिनमें जावेद आलम ने राही पर बोलते हुए कहा कि - राही का जुड़ाव अपने जमीन से बहुत गहरा रहा है। उन्होंने अपने को गंगा का बेटा कहा है। आधा गाँव' एवं ओस की बूद' की भी चर्चा की। भारतीय विभाजन की त्रासदी का भी उन्होंने उल्लेख किया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सन्दर्भ में १८५७ नामक कविता का जि+क्र किया। साम्प्रदायिकता का विरोध एवं मानवता की बात राही में विशेष रूप से मिलती है।
शोध-छात्र शहबाज अली खान ने राही के साहित्य में समय को महत्त्वपूर्ण आधार बताया। उन्होंने बताया कि साहित्यकार मूल रूप से इंसानियत, प्रेम, सौहार्द की बात करता है। साहित्यकार वही होगा जिसके यहाँ इंसानियत होगी। उन्होंने बताया कि विभाजन का दर्द प्रत्येक भारतीय मुसलमान को है। इसके बावजूद मुसलमानों को देशभक्ति का प्रमाण-पत्र देना पड़ता है, परन्तु राही के साहित्य में हमें पूरे हिन्दुस्तानी होने का भाव अकुण्ठ रूप से मिलता है। खान ने बताया कि राही ने अपने समय के बुद्जीवियों के उपनिवेशवादी नजरिये को पहचान लिया था। उनका पूरा साहित्य उपनिवेशवादी प्रवृत्तियों के विरोध का साहित्य है। उन्होंने राही के भाषाई विशेषता की ओर भी संकेत किया।
संगोष्ठी में बोलते हुए सरताज आलम ने बताया कि राही के साहित्य में भारत की एकता और अखण्डता को बचाने का काम किया है। उन्होंने बताया कि उनकी कविताओं में उनका दर्द देखा जा सकता है।
डॉ० हस्सान ने अपने वक्तव्य में बताया कि - यह कितना महत्त्वपूर्ण है कि एक उर्दू का आदमी महाभारत के संवाद को लिखता है। यह उसकी सेकुलर छवि को ज्ञापित करती है। राही ने हिन्दी-उर्दू की बात न करके इंसानियत पर अधिक बल दिया है और अवाम को पुकारा है। हिन्दू-मुसलमान को नहीं।
डॉ० खुर्शीद ने उर्दू साहित्य में उनके बिखरे हुए रचनाओं व उन पर चर्चा करने की बात कही और इस बात की ओर संकेत किया कि उनकी रचनाओं का उर्दू से हिन्दी में अनुवाद कार्य जल्द से जल्द होना चाहिए।
डॉ० जुल्फ़िकार ने इस संगोष्ठी में बोलते हुए कहा कि राही मासूम रजा की सर्व धर्म समभाव की आवश्यकता पर बल देते हैं। उन्होंने बताया कि हम उनकी कोई भी रचना पढ़ते हैं तो हमें भारत की तस्वीर दिखाई देती है। उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय सरोकार हमें दिखाई देता है। उनके सामाजिक धरातल से जुड़ाव को रेखांकित किया और इस प्रकार की संगोष्ठी करने के प्रयासों को उत्साहवर्धक बताया।
शोध-छात्र विनीत कुमार ने बताया कि राही से उनका परिचय उनकी रचनाओं से हुआ। राही अपने लिए तीन माँओं का जि+क्र करते हैं। एक वह माँ जो जननी है। दूसरी माँ ग़ाजीपुर जिसने उन्हें पाला-पोसा। तीसरी माँ अलीगढ़ को बताया। इस प्रकार राही की उनके ज+मीनी जुड़ाव की चर्चा उन्होंने की।
कु० भानु ने राही के धर्मनिर्पेक्षता को आधार बनाकर बोलते हुए कहा कि धर्मनिर्पेक्षता का रूप उनके लिए एकपक्षीय नहीं है, बल्कि समन्वित रूप में आता है। शोध-छात्र वाजिद, अफ़जाल, अशरफ अली खाँ व मु० आसिफ़ ख़ान ने भी अपने विचार संगोष्ठी में रखे।
कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्राध्यापक मेराज अहमद ने किया। उन्होंने राही के साहित्य पर विशेष चर्चा संचालन के बीच में ही की। राही पर प्रस्तुत गोष्ठी वाङ्मय परिवार की ओर से आहूत की गई थी। वाङ्मय पत्रिका के सम्पादक डॉ० एम० फीरोज अहमद ने उनकी कहानियों की विशेष चर्चा करने की बात कही और उसके साथ ही साथ उनके फ़िल्मी योगदान के विषय में भी उन्होंने चर्चा की। इस कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन वीमेंस कालेज की प्रवक्ता डॉ० शगुफ्ता नियाज ने किया। और गोष्ठी की सफलता के लिए वक्ताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस संगोष्ठी में अहमद अली, मुशीरा ख़ातून आदि लोग भी उपस्थित थे।

Monday, March 23, 2009

क्रांति कथा




क्रांति कथा

सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
कान खोलकर सुना कथा है क्रांति के पहले सावन की

सबने चलाया, धीरे-धीरे फौज पे अपना जादू
आजादी की नई कली चटकी तो फैली खुशबू
हिन्दी फौज में नफरत की एक आँधी आई हरसू (चारों ओर)
जिसको पानी समझ रहे थे वह तो निकला बालू
बाँध लो सबने एक कमल से डोरी अपने जीवन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

उत्तर भारत में पूरब से पश्छिम तक तय्यारी
डग,डग,डग,डग बजी डुगडुगी क्या कहता है मदारी
नट आए तो कूद-फाँद में इनकी मारामारी
कठपुतली का नाच देखने आयेंगे नरनारी
कठपुतली के नाच की गत पर क्रान्ति की गरम हवा सनकी
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

छावनी में पटना की आते थे अक्सर एक मुल्ला
उजली दाढ़ी, उजला कुरता और उजला पाएजामा
मुद्दत तक गोरे नहीं समझे क्या मक़सद था उनका
रखके किताबों में लाए थे शहर से वह संदेसा
आजादी के दीवाने को फिक्र नहीं थी तन मन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

एक दिन चुपके से मुख्बिर (गुप्तचर) ने उनकी खबर पहुँचाई
अंग्रेजी शैतानों की यह सुनते ही बन आई
मुल्ला जी बेचारे ने तब शायद फांसी पाई
गोरे तो समझे थे मुल्ला जी को सिर्फ एक राई
लेकिन कोह हिमाला निकली ऊँचाई उस गर्दन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

पटना के सब मुल्ला यूं तो कहने को थे वहाबी
लेकिन सर से पांवों तलक थे सारे मुल्ला हिन्दी
उन सबने जब चार तरफ यह घोर निराशा देखी
तब कुरान के जुजदानों (बस्ता) में एक कटार-सी चमकी
उन सबने तब पाल बनाई पैगम्बर के दामन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

मुल्ला काम में अपने मगन थे, पंडित अपनी धुन में
धीरे-धीरे आजादी का रस आया जामून में
तलवारों की धारें-सी चमकीं एक-एक नाखून में
रुत बदली तो ऐसी बदली जेठ लगा फागुन में

तपते जेठ ने बात सुनाई आकर भीगे सावन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

पटना के बाज+ार पे हैं तारीख की अब भी निगाहें
दिल्ली के दरबार की जानिब (दिल्ली दरबार की ओर से) से वाटें तनख्वाहों
दिल्ली की जानिब फैली थीं दानापुर की बांहें
चाँदी की झाड़ से झाड़ें आजादी की राहें देश की
दुश्मन नहीं बनी थी तब तक गाँठ महाजन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

मोतीधर ने गद्दारी की और अंग्रेज ने जाना
ऐसे गद्दारों का भैया कहो कहां हैं ठिकाना
देश बेचकर पाया होगा चन्द टकों का बयाना
गद्दारी करने से तो अच्छा ही था मर जाना
मर जाता तो धूल दवा बन जाती उसके दामन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सत्तावन की

देश के दुश्मन के मुख्बिर पर इस धरती की लानत
अपने देश की नर्म हवा पानी मिट्टी को लानत
इस मिट्टी से बनने वाले नर-नारी की लानत
लानत उस पर भाई-बहन की लानत रक्षाबन्धन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

दो गद्दार जमादारों के साथ चले कुछ फौजी
बोध गया की राह में इक इक्के की पायल खनकी

इक्कावान ने उनके पास पहुँचकर रोकी घोड़ी
इक्का पर दो मियाँ जी बैठे रक्खी थी इक थैली
इन फौजों गद्दारों ने कुछ हँू हाँ की कुछ कदगन (अस्वीकृति) की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सत्तावन की

इक्का वालों में से इक ने उनको दिया रुपैया
और कहा यह इनसे दिल्ली से आयेगा पहिया
उन दोनों का हश्र हुआ क्या यह न किसी ने जाना
उसके बाद न फिर उन दोनों को दुनिया ने देखा
जाने कब तक राह तका की राह उन्हें मतवालन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

पटना के अत्राफ (पटना की दिशा में) में फैला छुट पुट यों जो उजाला
दिल ही दिल में घबराया तब अंग्रेजों का अंधेरा
अंग्रेजों ने सर जोड़े और जोड़ के सर यह सोचा
जासूसों को चार तरफ जल्दी जल्दी दौड़ाया
यह है धरती राम की लेकिन कौन कमी है रावन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

जासूसों के गोल चले ले लेकर उजले दामन
राम की चीख सुनी तो फौरन धोखा खा गये लछमन
दिल के द्वार से निकली बाहर-सीता देखकर बाह्मन
आजादी की सीता को झटपट हर ले गया रावन
राम की हालत क्या कहिए क्या कहिए हालत लछमन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

जासूसों ने ढूंढा और इक दस्तावेज निकाली
जिसके हर हर लफ्ज से छलकी खून की गहरी लाली
खून की सुर्खी देख के काँपी रात भयानक काली
आजादी को सींच रहे थे अपने खून से माली
वह कागज था एक कहानी कितने दिलों के धड़कन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

वह कागज जन्नार (माला) की दोड़ी और तस्बीह (माला) का दाना
हिन्दू मुस्लिम ऐके का था एक अमिट अफसाना
एक सतर काबा थी उसकी एक सतर बुतखाना
दो सतरों के बीच में था आजादी का पैमाना
एक जुबाँ है हिन्दू मुस्लिम दोनों दिलों की धड़कन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

यह सब देख के अंग्रेजों के पाँव की धरती सरकी
सोन किनारे ऐसे ही में झूमके आई दोरी (यह मेला अब भी लगता है)
मेंढे गायें बरघों की जोड़ी (बैलों की जोड़ी) और घोड़ा हाथी
बच्चे कच्चे बूढ़े वाले मर्द के साथ लुगाई (पति-पत्नी)
धूम धड़क्का भीड़ भड़क्का गीत पे ढोलक भी ठनकी
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

इस मजमें में एक तरफ से ख्वाजा हसन भी आये
अपने खेमे में बैठे चारों पर्दे सरकाये
रात गये तक लोग आते थे अपने पैर दबाये
आजादी के दीवानों ने अपने पैर जमाये
ऐ दोरी! क्या याद नहीं आती अब तुझको उस सन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुना सत्तावन की

भारत वाले देख रहे थे महायुद्ध के सपने
जो नहीं समझे वह भी समझे जो समझे वह समझे
ऐसी हवा थी युद्ध का खेल ही खेल रहे थे बच्चे
उन्तीस मार्च को बैरकपूर में लड़ गये मंगल पांडे
अब तक याद है फाँसी के फन्दे में ऐंठन गर्दन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

Sunday, March 22, 2009

GAZAL

भारत वाले देख रहे थे महायुद्ध के सपने
जो नहीं समझे वह भी समझे जो समझे वह समझे
ऐसी हवा थी युद्ध का खेल ही खेल रहे थे बच्चे
उन्तीस मार्च को बैरकपूर में लड़ गये मंगल पांडे
अब तक याद है फाँसी के फन्दे में ऐंठन गर्दन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

Saturday, March 21, 2009

GAZAL

इस मजमें में एक तरफ से ख्वाजा हसन भी आये
अपने खेमे में बैठे चारों पर्दे सरकाये
रात गये तक लोग आते थे अपने पैर दबाये
आजादी के दीवानों ने अपने पैर जमाये
ऐ दोरी! क्या याद नहीं आती अब तुझको उस सन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुना सत्तावन की

Thursday, March 19, 2009

GAZAL

यह सब देख के अंग्रेजों के पाँव की धरती सरकी
सोन किनारे ऐसे ही में झूमके आई दोरी (यह मेला अब भी लगता है)
मेंढे गायें बरघों की जोड़ी (बैलों की जोड़ी) और घोड़ा हाथी
बच्चे कच्चे बूढ़े वाले मर्द के साथ लुगाई (पति-पत्नी)
धूम धड़क्का भीड़ भड़क्का गीत पे ढोलक भी ठनकी
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

Friday, March 13, 2009

सुनो भाइयो, सुनो भाइयो

जासूसों ने ढूंढा और इक दस्तावेज निकाली
जिसके हर हर लफ्ज से छलकी खून की गहरी लाली
खून की सुर्खी देख के काँपी रात भयानक काली
आजादी को सींच रहे थे अपने खून से माली
वह कागज था एक कहानी कितने दिलों के धड़कन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

Thursday, March 12, 2009

आजादी

जासूसों के गोल चले ले लेकर उजले दामन
राम की चीख सुनी तो फौरन धोखा खा गये लछमन
दिल के द्वार से निकली बाहर-सीता देखकर बाह्मन
आजादी की सीता को झटपट हर ले गया रावन
राम की हालत क्या कहिए क्या कहिए हालत लछमन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

Wednesday, March 11, 2009

दिल ही दिल

पटना के अत्राफ (पटना की दिशा में) में फैला छुट पुट यों जो उजाला
दिल ही दिल में घबराया तब अंग्रेजों का अंधेरा
अंग्रेजों ने सर जोड़े और जोड़ के सर यह सोचा
जासूसों को चार तरफ जल्दी जल्दी दौड़ाया
यह है धरती राम की लेकिन कौन कमी है रावन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

Tuesday, March 10, 2009

GAZAL

इक्का वालों में से इक ने उनको दिया रुपैया
और कहा यह इनसे दिल्ली से आयेगा पहिया
उन दोनों का हश्र हुआ क्या यह न किसी ने जाना
उसके बाद न फिर उन दोनों को दुनिया ने देखा
जाने कब तक राह तका की राह उन्हें मतवालन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

Monday, March 9, 2009

इक्कावान

दो गद्दार जमादारों के साथ चले कुछ फौजी
बोध गया की राह में इक इक्के की पायल खनकी

इक्कावान ने उनके पास पहुँचकर रोकी घोड़ी
इक्का पर दो मियाँ जी बैठे रक्खी थी इक थैली
इन फौजों गद्दारों ने कुछ हँू हाँ की कुछ कदगन (अस्वीकृति) की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सत्तावन की

इक्कावान

दो गद्दार जमादारों के साथ चले कुछ फौजी
बोध गया की राह में इक इक्के की पायल खनकी

इक्कावान ने उनके पास पहुँचकर रोकी घोड़ी
इक्का पर दो मियाँ जी बैठे रक्खी थी इक थैली
इन फौजों गद्दारों ने कुछ हँू हाँ की कुछ कदगन (अस्वीकृति) की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सत्तावन की

Sunday, March 8, 2009

देश के दुश्मन

देश के दुश्मन के मुख्बिर पर इस धरती की लानत
अपने देश की नर्म हवा पानी मिट्टी को लानत
इस मिट्टी से बनने वाले नर-नारी की लानत
लानत उस पर भाई-बहन की लानत रक्षाबन्धन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

Saturday, March 7, 2009

GAZAL

मोतीधर ने गद्दारी की और अंग्रेज ने जाना
ऐसे गद्दारों का भैया कहो कहां हैं ठिकाना
देश बेचकर पाया होगा चन्द टकों का बयाना
गद्दारी करने से तो अच्छा ही था मर जाना
मर जाता तो धूल दवा बन जाती उसके दामन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सत्तावन की

Friday, March 6, 2009

GAZAL

पटना के बाजार पे हैं तारीख की अब भी निगाहें
दिल्ली के दरबार की जानिब (दिल्ली दरबार की ओर से) से वाटें तनख्वाहों
दिल्ली की जानिब फैली थीं दानापुर की बांहें
चाँदी की झाड़ से झाड़ें आजादी की राहें देश की
दुश्मन नहीं बनी थी तब तक गाँठ महाजन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

Thursday, March 5, 2009

GAZAL

मुल्ला काम में अपने मगन थे, पंडित अपनी धुन में
धीरे-धीरे आजादी का रस आया जामून में
तलवारों की धारें-सी चमकीं एक-एक नाखून में
रुत बदली तो ऐसी बदली जेठ लगा फागुन में

तपते जेठ ने बात सुनाई आकर भीगे सावन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

Wednesday, March 4, 2009

GAZAL

पटना के सब मुल्ला यूं तो कहने को थे वहाबी
लेकिन सर से पांवों तलक थे सारे मुल्ला हिन्दी
उन सबने जब चार तरफ यह घोर निराशा देखी
तब कुरान के जुजदानों (बस्ता) में एक कटार-सी चमकी
उन सबने तब पाल बनाई पैगम्बर के दामन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

Tuesday, March 3, 2009

क्रान्ति कथा

एक दिन चुपके से मुख्बिर (गुप्तचर) ने उनकी खबर पहुँचाई
अंग्रेजी शैतानों की यह सुनते ही बन आई
मुल्ला जी बेचारे ने तब शायद फांसी पाई
गोरे तो समझे थे मुल्ला जी को सिर्फ एक राई
लेकिन कोह हिमाला निकली ऊँचाई उस गर्दन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

Monday, March 2, 2009

क्रांति कथा

छावनी में पटना की आते थे अक्सर एक मुल्ला
उजली दाढ़ी, उजला कुरता और उजला पाएजामा
मुद्दत तक गोरे नहीं समझे क्या मक़सद था उनका
रखके किताबों में लाए थे शहर से वह संदेसा
आजादी के दीवाने को फिक्र नहीं थी तन मन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

Sunday, March 1, 2009

GAZAL

उत्तर भारत में पूरब से पश्छिम तक तय्यारी
डग,डग,डग,डग बजी डुगडुगी क्या कहता है मदारी
नट आए तो कूद-फाँद में इनकी मारामारी
कठपुतली का नाच देखने आयेंगे नरनारी
कठपुतली के नाच की गत पर क्रान्ति की गरम हवा सनकी
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की