Tuesday, January 6, 2009

अंधेरा है कि तुम रोशनी

इस घर में अंधेरा है कि तुम रोशनी बेचो
चोरी भी करो घूम के पहरा भी तुम्हीं दो
दो जहर भी तिर्याक (विपनाशक) की दुकान भी खोलो
जिस राह से आए हो उसी राह से जाओ
नफरत कही करोगे न मुहब्बत ही करोगे
ताजिर (व्यापारी) हो बहरहाल तिजारत (व्यापार) ही करोगे

हवा के दोश पर यह बात चल पड़ी
हर एक जर्रा चौंक उठा यह क्या हुआ
हर इक किवाड़ कोई खटखटा गया
हर एक दिल यह बोल उठा बुरा हुआ

4 comments:

Ashutosh said...

sir, rahi masoom raja ke sahitya ko aur vishleshan karne ki jarurat hai ! tabhi koi sahi baat nikal kar samne aayegi !

Ashutosh said...
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vangmyapatrika said...
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vangmyapatrika said...

आशुतोष जी आपको जानकारी अधूरी है. राही ने जितनी बेबाक टिप्पणी की है उतनी अन्य लेखको में कम ही मिलती है. पहले उनका परिचय देखे और उनकी रचनाओं को पढ़े. तब टिप्पणी दे. राही के बारे में आप कुछ नहीं जानते है.