Sunday, November 23, 2008

कविता

राही मासूम रजा

इक धमाका सा हुआ
बैरकें चौंक पड़ीं
हम सभी दौड़ पड़े
बिजलयां कौंध गई

दिल ने कुछ दिल से कहा
आंखें आंखों से मिलीं
इक तरफ आई खिज़ां
इक तरफ कलियां खिलीं

इक हंगामा भी है
इक सन्नाटा भी है
शोर भी है जैसे हो चुप
सबने कुछ समझा भी है

5 comments:

vijay kumar sappatti said...

kya baat kahi gayi hai ..is nazm mein .. ye hamari dil ki baat hai .. ek hangama bhi hai ,ek sannata bhi hai
shor bhi hai ,jaise chup...
sabne kuch samjha bhi hai ...
wah wah ... choti si nazm mein duniya ki baat kahi gayi hai , salukhon ki baat kahi gayi hai ..

main poora ka poora blog ahiste ahiste padunga aur apni baat kahunga

shukriya , firoz bhai , itna accha blog banaane ka ..
kudos to you.


vijay

रंजू भाटिया said...

दिल ने कुछ दिल से कहा
आंखें आंखों से मिलीं
इक तरफ आई खिज़ां
इक तरफ कलियां खिलीं

bahut acchi lagi

"अर्श" said...

दिल ने कुछ दिल से कहा
आंखें आंखों से मिलीं
इक तरफ आई खिज़ां
इक तरफ कलियां खिलीं

गुनगुनाने को जी चाहता है ये पंक्तियाँ बहोत ही बेहतरीन लिखा है आपने... ढेरो साधुवाद आपको साहब.

वर्षा said...

जैसे सारे हंगामे, सन्नाटे सिमट के इस कविता में उतर गए हों

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना प्रेषित की है।बधाई।