Thursday, November 27, 2008

कहानी बनाम आलोचना

राही मासूम रजा

जान स्टीनबेक के एक उपन्यास ईस्ट ऑव एडेन में एक चीनी बावर्ची है लो - कहानियों के विषय में इस बावर्ची की राय हमारे बहुत-से कहानी लिखने वालों से ज्यादा जंची-तुली है, उसका कहना है - लोगों को केवल अपने-आप में दिलचस्पी होती है, इसलिए अगर कोई कहानी सुनने वाले के बारे में नहीं है तो वह उसे सुनेगा ही नहीं, इसलिए मैं यहां एक नियम बनाता हूँ कि हर महान और जीवित रहने वाली कहानी तमाम लोगों के बारे में होती है, नहीं तो वह जिंदा नहीं रह सकती, विचित्र और अजनबी चीजें कभी दिलचस्प नहीं हो सकतीं, दिलचस्प तो केवल गहरी, व्यक्तिगत और जानी-बूझी चीजें होती हैं।''
मुझे इस बावर्ची की बात बहुत सारे आलोचकों से अच्छी लगी क्योंकि इस बावर्ची ने हमारी कहानियों को उस दुखती रग पर हाथ रख दिया है जो आज तक हमारे आलोचकों को दिखायी नहीं दी, बात यह है कि हमारे आलोचक तो बड़े-बड़े शब्दों के प्रमाण की साधना में लगे रहते हैं और इस साधना में इतना खो जाते हैं कि एक छोटी-सी बात की ओर उनका ध्यान नहीं जाता कि कहानी के लिए कहानी होना पहली शर्त है। ली ने यह रहस्य पा लिया था। इसलिए उसने दो वाक्यों में कहानी की आलोचना कर दी जो साहित्य के पंडितों से किताबों में नहीं हो सकी।

1 comment:

अभिषेक मिश्र said...

सही कहा गया है कि कहानियाँ वही अमर होती हैं, जिनसे आम आदमी ख़ुद को जुडा हुआ पाता है. राही मासूम रजा जी कि कृतियाँ शायद इसीलिए आज भी याद की जाती हैं.