Wednesday, November 26, 2008

कविता

राही मासूम रज़ा


हर तरफ एक हू का आलम है
हर तरफ बेकसी बरसती है
हमने गैरत लुटा के यह जाना
जिन्दगी तू भी कितनी मंहगी है

4 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर!!

"अर्श" said...

कोमल भाव में अभिब्यक्त रचना .. बहोत ही सुंदर भाव.. आपको ढेरो बधाई साहब....

Randhir Singh Suman said...

good.suman.lokshangharsha

Randhir Singh Suman said...

good.suman.lokshangharsha