Thursday, November 13, 2008

गंगा के उजले पानी पर

राही मासूम रज़ा

इक दिन गर्म हवा का झोका
गुस्से में जाने क्या कहता
बढ़ कर सरकाता है परदा
छावनी के ऊंचे बंगले का

हैरा(चकित) है दाला(दालाना) की खुनकी(शीतलता)
लरजा(कम्पित) है कमरे का परदा
खौफ़ज़दा हैं मेज के काग़ज
घबराया है शहर का नक्शा

कमरे में कुछ लोग हैं लेकिन
कमरे में सन्नाटा-सा है
हर लब पर कुछ खुश्की-सी है
हर चेहरा कुछ उतरा-सा है

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