राही मासूम रज़ा 
मस्जिद तो अल्लाह की ठहरी                         
मंदिर राम का निकला                    
लेकिन मेरा लावारिस दिल                      
अब जिस की जंबील में कोई ख़्वाब                     
कोई ताबीर नहीं है                        
मुस्तकबिल की रोशन रोशन                       
एक भी तस्वीर नहीं है                     
बोल ए इंसान, ये दिल, ये मेरा दिल                   
ये लावारिस, ये शर्मिन्दा शर्मिन्दा दिल                       
आख़िर किसके नाम का निकला                
मस्जिद तो अल्लाह की ठहरी              
मंदिर राम का निकला                
बन्दा किसके काम का निकला               
ये मेरा दिल है                 
या मेरे ख़्वाबों का मकतल            
चारों तरफ बस ख़ून और आँसू, चीख़ें, शोले                   
घायल गुड़िया                  
खुली हुई मुर्दा आँखों से कुछ दरवाज़े                
ख़ून में लिथड़े कमसिन कुरते           
एक पाँव की ज़ख़्मी चप्पल               
जगह-जगह से मसकी साड़ी               
शर्मिन्दा नंगी शलवारें                    
दीवारों से चिपकी बिंदी              
सहमी चूड़ी                 
दरवाज़ों की ओट में आवेजों की कबरें               
ए अल्लाह, ए रहीम, करीम, ये मेरी अमानत               
ए श्रीराम, रघुपति राघव, ए मेरे मर्यादा पुरुषोत्तम               
ये आपकी दौलत आप सम्हालें              
मैं बेबस हूँ              
आग और ख़ून के इस दलदल में        
मेरी तो आवाज़ के पाँव धँसे जाते हैं।
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