Tuesday, October 28, 2008

सब डरते हैं, आज हवस के इस सहरा में बोले कौन

राही मासूम रजा

सब डरते हैं, आज हवस के इस सहरा में बोले कौन
इश्क तराजू तोहै, लेकिन, इस पे दिलों को तौले कौन

सारा नगर तो ख्वाबों की मैयत लेकर श्मशान गया
दिल की दुकानें बंद पडी है, पर ये दुकानें खोले कौन

काली रात के मुंह से टपके जाने वाली सुबह का जूनून
सच तो यही है, लेकिन यारों, यह कड़वा सच बोले कौन

हमने दिल का सागर मथ कर कथा तो कुछ अमृत
लेकिन आयी, जहर के प्यालों में यह अमृत घोले कौन

लोग अपनों के खूं में नहा कर गीता और कुरान पढ़ें
प्यार की बोली याद है किसको, प्यार की बोली बोले कौन

3 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

बहुत उम्‍दा कार्य कर रहे हैं आप।

narsing said...

bhai shahab ye kab ke upnyas hai jaha tak meri jaankari hai sirf 9 upnyas hi rahi sahab ne likhi ye baat unke mitr aur sahkarmi lekhak kuvarpal ne apni pustak me likhi hy

narsing said...

bhai shahab ye kab ke upnyas hai jaha tak meri jaankari hai sirf 9 upnyas hi rahi sahab ne likhi ye baat unke mitr aur sahkarmi lekhak Dr.kuvarpal sing ne apni ek pustak me likhi hy