जुनूं है कौन-सी मंजिल में यह तो उस पर है
जमीन घर भी है जिन्दां (जेल) भी है जहन्नम भी
अगर शिगूफे (कलियाँ) हों तैयार मुस्कराने पर
तो काम आए चमन में खुलूसे (निर्मलता) शबनम भी
रबिश-रबिश (बाग के भीतर के पतले रास्ते) पे हैं गोरों के पांव के धब्बे
यह बाग वह है जहां चांदनी उतरती थी
शिगूफे मलते थे आँखें सहर की आहट पर
यहाँ पे रात की जुल्फें सियाह सँवरती थीं
झुकी निगाहें कि आलम पनाह आते हैं
नुजूले रहमते परवरदिगार (परमात्मा की कृपा होती है) होता है
हुजूर इब्ने शहंशाह (शहंशाह का पुत्र) जिल्ले सुब्हानी (अच्छा शासक)
यह एक तीर है सीने के पार होता है
1 comment:
बहुत अच्छे !!
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