अभी तक किले की दुनिया वही है
वही जश्न-ए-शब-ए-महताब (जश्न की रात का चन्द्रमा) भी है
वही मसनद वही अन्दाज-ए-मसनद
तो महफिल में दिल-ए-बेताब भी है
यह दिल्ली यूं तो है हर दिल की बस्ती
यह दिल्ली हर जगह से दूर भी है
यह दिल्ली आज भी दिलली है लेकिन
यह दिल्ली अब बहुत मजबूर भी है
1 comment:
बहुत खूबसूरत लिखा है साधुवाद्
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