यह किसका दरबार लगा है
सब ही जिन्दा सब ही मुर्दा
राही शहर आशोब (शहर की मरसिया) सुनाओ
कैसी गजल और कैसा कसीदा
दिल्ली जो एक शहर था आलम में इन्तखाब'' (दुनिया में अकेला)
दिल्ली जरूर है पे वह दिल्ली नहीं है यह
हँसती तो है जरूर मगर अपने हाल पर
अब वैसे बात पर हँसती नहीं है यह
अगर फिरदौस बररूऐ जमीन अस्त
हमीं अस्त-ओ-हमीं-अस्त-ओ हमीं अस्त
1 comment:
बहुत आभार फिरोज भाई इस प्रस्तुति के लिए.
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