Thursday, January 15, 2009

GAZAL

यह किसका दरबार लगा है
सब ही जिन्दा सब ही मुर्दा
राही शहर आशोब (शहर की मरसिया) सुनाओ
कैसी गजल और कैसा कसीदा

दिल्ली जो एक शहर था आलम में इन्तखाब'' (
दुनिया में अकेला)
दिल्ली जरूर है पे वह दिल्ली नहीं है यह
हँसती तो है जरूर मगर अपने हाल पर
अब वैसे बात पर हँसती नहीं है यह
अगर फिरदौस बररूऐ
जमीन अस्त
हमीं अस्त-ओ-हमीं-अस्त-ओ हमीं अस्त

1 comment:

Udan Tashtari said...

बहुत आभार फिरोज भाई इस प्रस्तुति के लिए.