राही मासूम रज़ा का साहित्य ( RAHI MASOOM RAZA )
Monday, March 2, 2009
क्रांति कथा
छावनी में पटना की आते थे अक्सर एक मुल्ला
उजली दाढ़ी, उजला कुरता और उजला पाएजामा
मुद्दत तक गोरे नहीं समझे क्या मक़सद था उनका
रखके किताबों में लाए थे शहर से वह संदेसा
आजादी के दीवाने को फिक्र नहीं थी तन मन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
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