Tuesday, March 3, 2009

क्रान्ति कथा

एक दिन चुपके से मुख्बिर (गुप्तचर) ने उनकी खबर पहुँचाई
अंग्रेजी शैतानों की यह सुनते ही बन आई
मुल्ला जी बेचारे ने तब शायद फांसी पाई
गोरे तो समझे थे मुल्ला जी को सिर्फ एक राई
लेकिन कोह हिमाला निकली ऊँचाई उस गर्दन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

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