पटना के बाजार पे हैं तारीख की अब भी निगाहें
दिल्ली के दरबार की जानिब (दिल्ली दरबार की ओर से) से वाटें तनख्वाहों
दिल्ली की जानिब फैली थीं दानापुर की बांहें
चाँदी की झाड़ से झाड़ें आजादी की राहें देश की
दुश्मन नहीं बनी थी तब तक गाँठ महाजन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
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