हर इक हवेली का दर खटखटा रही है हवा
उठो कि खत्म वह लुत्फे हजा में शाम (प्रसन्नता भरी शाम) हो
छिड़ा था जो कभी काबेरी के किनारे पर
यह किस्सा आज लबे गोमती तमाम हो
सुनो कि नूर की अब एक भी लकीर नहीं
अवध का एक सितारा था वह भी डूब गया
सुनो कि आज से अख्तर है बरजे खाकी में (मिट्टी में मिल गया)
कटा-कटा जो किनारा था वह भी डूब गया
2 comments:
badhiya ...
आभार इस प्रस्तुति का.
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