Tuesday, January 13, 2009

GAZAL

निगाहें उठती हैं मसनद-नशीं (मसनद पर बैठा हुआ) हैं तो कोई यह मकतए गजले इश्रते (आनन्द) शबाना है
यह ताजो तख्त यह जरी कबा (जरी का अंगरखा) यह शाने नुजल (आतिथ्य सत्कार)
यह अपने वक्त का सबसे बड़ा दिवाना है

यह उस पे खुश है कि कल ही की तरह आज भी लोग
मेरे हुजूर कसीदों की नजर लायेंगे
बताये कौन यह उसको कि साहवाने सुखन (काव्यमर्मज्ञ लोग)
दरोगे मसलहत (गलत सलाह) आमेज (मिलने वाले) लेकर आयेंगे

5 comments:

Ashutosh said...
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vangmyapatrika said...

राहीकृत 1857 पढ़े.फिर बताएं. इसके बाद सीन75,फिर असंतोष का एक दिन पढ़े.उनकी कहानी पढ़े.(आशुतोष के लिए)

Ashutosh said...
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Ashutosh said...
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Ashutosh said...
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