Thursday, January 29, 2009

GAZAL

बर्दाश्त की हद से बहुत आगे है मुसीबत
हर लम्हा कोई बात है हर रोज इक आफत
फाकों के करीब आ गये गोरों की बदौलत
लानी ही पड़ेगी हमें अब कोई कयामत
मैदान में जाँ बेच के आना ही पड़ेगा
अँग्रेज को इस मुल्क से जाना ही पड़ेगा

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!!

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बहुत पुरानी बात है सर! अब तो हम काले अंग्रेजों से त्रस्त हैं. उनका क्या किया जाए?