Monday, March 23, 2009
क्रांति कथा
क्रांति कथा
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
कान खोलकर सुना कथा है क्रांति के पहले सावन की
सबने चलाया, धीरे-धीरे फौज पे अपना जादू
आजादी की नई कली चटकी तो फैली खुशबू
हिन्दी फौज में नफरत की एक आँधी आई हरसू (चारों ओर)
जिसको पानी समझ रहे थे वह तो निकला बालू
बाँध लो सबने एक कमल से डोरी अपने जीवन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
उत्तर भारत में पूरब से पश्छिम तक तय्यारी
डग,डग,डग,डग बजी डुगडुगी क्या कहता है मदारी
नट आए तो कूद-फाँद में इनकी मारामारी
कठपुतली का नाच देखने आयेंगे नरनारी
कठपुतली के नाच की गत पर क्रान्ति की गरम हवा सनकी
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
छावनी में पटना की आते थे अक्सर एक मुल्ला
उजली दाढ़ी, उजला कुरता और उजला पाएजामा
मुद्दत तक गोरे नहीं समझे क्या मक़सद था उनका
रखके किताबों में लाए थे शहर से वह संदेसा
आजादी के दीवाने को फिक्र नहीं थी तन मन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
एक दिन चुपके से मुख्बिर (गुप्तचर) ने उनकी खबर पहुँचाई
अंग्रेजी शैतानों की यह सुनते ही बन आई
मुल्ला जी बेचारे ने तब शायद फांसी पाई
गोरे तो समझे थे मुल्ला जी को सिर्फ एक राई
लेकिन कोह हिमाला निकली ऊँचाई उस गर्दन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
पटना के सब मुल्ला यूं तो कहने को थे वहाबी
लेकिन सर से पांवों तलक थे सारे मुल्ला हिन्दी
उन सबने जब चार तरफ यह घोर निराशा देखी
तब कुरान के जुजदानों (बस्ता) में एक कटार-सी चमकी
उन सबने तब पाल बनाई पैगम्बर के दामन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
मुल्ला काम में अपने मगन थे, पंडित अपनी धुन में
धीरे-धीरे आजादी का रस आया जामून में
तलवारों की धारें-सी चमकीं एक-एक नाखून में
रुत बदली तो ऐसी बदली जेठ लगा फागुन में
तपते जेठ ने बात सुनाई आकर भीगे सावन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
पटना के बाज+ार पे हैं तारीख की अब भी निगाहें
दिल्ली के दरबार की जानिब (दिल्ली दरबार की ओर से) से वाटें तनख्वाहों
दिल्ली की जानिब फैली थीं दानापुर की बांहें
चाँदी की झाड़ से झाड़ें आजादी की राहें देश की
दुश्मन नहीं बनी थी तब तक गाँठ महाजन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
मोतीधर ने गद्दारी की और अंग्रेज ने जाना
ऐसे गद्दारों का भैया कहो कहां हैं ठिकाना
देश बेचकर पाया होगा चन्द टकों का बयाना
गद्दारी करने से तो अच्छा ही था मर जाना
मर जाता तो धूल दवा बन जाती उसके दामन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सत्तावन की
देश के दुश्मन के मुख्बिर पर इस धरती की लानत
अपने देश की नर्म हवा पानी मिट्टी को लानत
इस मिट्टी से बनने वाले नर-नारी की लानत
लानत उस पर भाई-बहन की लानत रक्षाबन्धन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
दो गद्दार जमादारों के साथ चले कुछ फौजी
बोध गया की राह में इक इक्के की पायल खनकी
इक्कावान ने उनके पास पहुँचकर रोकी घोड़ी
इक्का पर दो मियाँ जी बैठे रक्खी थी इक थैली
इन फौजों गद्दारों ने कुछ हँू हाँ की कुछ कदगन (अस्वीकृति) की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सत्तावन की
इक्का वालों में से इक ने उनको दिया रुपैया
और कहा यह इनसे दिल्ली से आयेगा पहिया
उन दोनों का हश्र हुआ क्या यह न किसी ने जाना
उसके बाद न फिर उन दोनों को दुनिया ने देखा
जाने कब तक राह तका की राह उन्हें मतवालन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
पटना के अत्राफ (पटना की दिशा में) में फैला छुट पुट यों जो उजाला
दिल ही दिल में घबराया तब अंग्रेजों का अंधेरा
अंग्रेजों ने सर जोड़े और जोड़ के सर यह सोचा
जासूसों को चार तरफ जल्दी जल्दी दौड़ाया
यह है धरती राम की लेकिन कौन कमी है रावन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
जासूसों के गोल चले ले लेकर उजले दामन
राम की चीख सुनी तो फौरन धोखा खा गये लछमन
दिल के द्वार से निकली बाहर-सीता देखकर बाह्मन
आजादी की सीता को झटपट हर ले गया रावन
राम की हालत क्या कहिए क्या कहिए हालत लछमन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
जासूसों ने ढूंढा और इक दस्तावेज निकाली
जिसके हर हर लफ्ज से छलकी खून की गहरी लाली
खून की सुर्खी देख के काँपी रात भयानक काली
आजादी को सींच रहे थे अपने खून से माली
वह कागज था एक कहानी कितने दिलों के धड़कन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
वह कागज जन्नार (माला) की दोड़ी और तस्बीह (माला) का दाना
हिन्दू मुस्लिम ऐके का था एक अमिट अफसाना
एक सतर काबा थी उसकी एक सतर बुतखाना
दो सतरों के बीच में था आजादी का पैमाना
एक जुबाँ है हिन्दू मुस्लिम दोनों दिलों की धड़कन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
यह सब देख के अंग्रेजों के पाँव की धरती सरकी
सोन किनारे ऐसे ही में झूमके आई दोरी (यह मेला अब भी लगता है)
मेंढे गायें बरघों की जोड़ी (बैलों की जोड़ी) और घोड़ा हाथी
बच्चे कच्चे बूढ़े वाले मर्द के साथ लुगाई (पति-पत्नी)
धूम धड़क्का भीड़ भड़क्का गीत पे ढोलक भी ठनकी
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
इस मजमें में एक तरफ से ख्वाजा हसन भी आये
अपने खेमे में बैठे चारों पर्दे सरकाये
रात गये तक लोग आते थे अपने पैर दबाये
आजादी के दीवानों ने अपने पैर जमाये
ऐ दोरी! क्या याद नहीं आती अब तुझको उस सन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुना सत्तावन की
भारत वाले देख रहे थे महायुद्ध के सपने
जो नहीं समझे वह भी समझे जो समझे वह समझे
ऐसी हवा थी युद्ध का खेल ही खेल रहे थे बच्चे
उन्तीस मार्च को बैरकपूर में लड़ गये मंगल पांडे
अब तक याद है फाँसी के फन्दे में ऐंठन गर्दन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की
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1 comment:
आभार जो यह साहित्य सहज उपलब्ध हो रहा है।
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