Monday, December 1, 2008

चम्मच भर चीनी

- राही मासूम रजा


पता नहीं रात ख़त्म हुई थी या नहीं। पता इसलिए नहीं कि आँखें बंद हों तो रात और दिन में फ़र्क करना मुश्किल हो जाता है। और वह लगभग बारह-चौदह साल से आँखें बंद किये जी रहा था- या शायद मर रहा था।
मैंने उससे कई बार कहा भी कि आँखें बंद करने से वास्तविकता नहीं बदलती पर उसने हर बार यही जवाब दिया कि - यार यह आँखें खोलने का युग ही नहीं है, किसी ने सूरज के सातों घोड़ों को समय के रथ के पीछे जोत दिया है। और वर्तमान से भविष्य की तरफ़ जाने वाला रास्ता जैसे बंद हो .....
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