Tuesday, December 9, 2008

रामायण हिन्दुस्तान के हिन्दुओं की धरोहर है?

- राही मासूम रजा
क्या रामायण सिर्फ़ हिन्दुस्तान के हिन्दुओं की धरोहर है? क्या उसकी झोली में,समूचे हिन्दुस्तान की झोली में डालने के लिए कुछ भी नहीं? धरोहर का आधार क्या हैं? श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं या हिन्दू मर्यादा पुरुषोत्तम ? क्या यह धारावाहिक केवल हिन्दुओं के लिए बनाया गया? यदि ऐसा है तो सीरियल दिखला कर दूरदर्शन ने भारत वर्ष के साथ अच्छा नहीं किया। दूरदर्शन इसलिए नहीं कि वह धमों और मजहबों की डोली उठाये-उठाये घर-घर जाए। कल मुसलमान मांग करेंगे कि मुहर्रम के दस दिनों में दूरदर्शन पर केवल मुहर्रम के कार्यक्रम आया करें, तब दूरदर्शन क्या करेगा? कल यदि ईसाइयों ने मांग की कि क्रिसमस के दिनों में बाइबिल पर आधारित कार्यक्रमों के सिवा कुछ और दिखलाया ही न जाए तब दूरदर्शन क्या करेगा? यही मांग बौद्ध और जैन समुदाय के लोग भी कर सकते हैं। वाल्मीकि और तुलसीदास का उत्तरधिकारी मैं भी हूँ और यह बात रामायण और महाभारत को हिन्दू-काव्य मानने वाले जितनी जल्दी समझ जाए उतना ही अच्छा होगा। यह पता लगाने के लिए एक सरकारी कमीशन बिठाना चाहिए कि हमारे भारत वर्ष में किस चीज का आधार क्या हैं? हमारी राजनीति आधारहीन और दिशाहीन है। अपनी-अपनी जेबों के सिवा कहां जाना है और किधर से जाना है। यह नहीं मालूम...नहीं फिर यदि रामानंद सागर की रामायण दिशाहीन निकले, तो क्या शिकायत? यह सीरियल देखकर मुझे लगा कि और इंसान मर गया' लिखने में........
इस लेख का शेष भाग राही विशेषांक में पढ़े.... http://rahimasoomraza.blogspot.com/2008/10/blog-post_7125.html इस पर क्लिक करें .और जानकारी प्राप्त करें.

2 comments:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

रामायण हो या कुरान यह पूरी इंसानियत को राह दिखाती है . इन अमर वाणियों को किसी एक देश, धर्म मे बांधना अपने साथ एक धोखा है .

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

आप के लेख के संदर्भ में चन्द पंक्तियां कहना चाहूंगा

“हम इश्क के बन्दे हैं, मजहब से नहीं वाकिफ।
गर काबा हुआ तो क्या, बुतखाना हुआ तो क्या?”