Sunday, December 28, 2008

GAZAL

भोजपुरी भी देख रही थी दूर-दूर तक रस्ता
अवधी के हर चारों तरफ भी था गहरा सन्नाटा
एक ऊँची तलवार बनी बैठी थी मीठी भाषा
और तारीख भी देख रही थी रंग खड़ी बोली का
देख वह काले बादल उट्ठे हवा चली वह दामन की
सुनो भाइयो, सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

जौनपुर भी ऐंठ रहा था, घूर रहा था बलिया
इस बस्ती की कजरी जागी, उस नगरी का बिरहा
गाजीपुर की खुशबू चौंकी, आजमगढ़ का चरखा
बकसर के मैदान में आया लोर (पूर्वी, उत्तर प्रदेश की बहुत लम्बी लाठी) सम्हाले आरा
छपरा ने भी बातें समझीं अपने दिल की धड़कन की
सुनो भाइयो सुनो भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

1 comment:

Unknown said...

bahut hi achchi kavita hai!
dhanyvad!