Monday, December 22, 2008

नफरत का एक दीप जलाये

नफरत का एक दीप जलाये राह पे राही आये
देख के अपनी कसी भुजायें मन ही मन मुस्काये

अंग्रेजों की घूस से लड़ने क्रान्ति के बादल छाये
सत्तावन ने बीन बजाई और काले लहराये

सर धड़ का बाजार गर्म था किसको फिक्र थी दामन की
सुनो भाइयो सुना भाइयो, कथा सुनो सत्तावन की

बन्दीघर में लोटा थाली पर बन्दी टकराये
अंग्रेजों ने लाठी के बादल उन पर बरसाये

इत्ती इत्ती बात पे फौजी जब देखो गरमाये
हालत यह थी जो बोले वह तोपों में उड़ जाये

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