Friday, November 28, 2008

1 दिसम्बर 2008 से

1857 क्रान्ति-कथा- राही मासूम रज़ा
राही मासूम रज़ा कृत 1857 की पुस्तक में से हर रोज कुछ न कुछ पढ़ने के लिए आप सभी को मिलेगा कविता शुरू से दी जायेगी.
इस बात को ताजा करने के लिए हिन्दुस्तानी तवारीख ने मुझे 1857 से बेहतर कोई मिसाल नहीं दी इसलिए मैंने 1857 का इन्तखाब किया। लेकिन 1857 का इस नजम का मौजूं नहीं है। इसका मौंजूं का कोई सन नहीं है इसका मौंजूं इन्सान है। सुकरात जहर पी सकता है, इब्ने मरियम को समलूब किया जा सकता है, ब्रोनो को जिन्दा जलाया जा सकता है, ऐवस्ट की तलाश में कई कारवाँ गुम हो सकते हैं लेकिन सुकरात हारता नहीं, ईसा की शिकस्त नहीं होती, ब्रोनो साबित कदम रखता है और ऐवरेस्ट का गुरूर टूट जाता है। मैंने यह नजम चंद किताबों की मदद से अपने कमरे में बैठकर नहीं लिखी है।
राही मासूम रज़ा कृत 1857 की पुस्तक में से हर रोज कुछ न कुछ पढ़ने के लिए आप सभी मिलेगा कविता शुरू से दी जा रही है .

2 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

intjar rahega. narayan narayan

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अच्छा अभियान है। एक सच्चे हिंदुस्तानी को सच्ची श्र्द्धांजलि होगी।