राही मासूम रज़ा
उदास क्यों हो निराश क्यों हो
किसी ने पूछा वह कुछ न बोला
मचल गयीं चूड़ियां किसी की
बिखर गया गेसुओं का साया
उदास तो हूं मगर मैं इसको
बताऊं क्या और बताऊं कैसे
जो देखकर भी न देख पाया
इसे वह मंजर दिखाऊं कैसे
जो फांस दिल में खटक रही है
वह सीने के पार हो न जाये
बगल में सा हुआ है मुन्ना
कहीं यह बेदार हो न जाये
उदास क्यों हूं यह बात छोड़ो
तुम्हारा मुन्ना बहुत हसीं है
यह सोचा था एक कश लगा लूं
चिलम में पर आग ही नहीं है
यह गाने जो गाया करती थीं तुम
वह गाने तो अब भी याद होगें
अलाव के गिर्द ऊंघते से
फसाने तो अब भी याद होंगे
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