- राही मासूम रजा
जैनब की आँखों में रास्ते की धूल थी, उसने अंगुलियों से आँखों मलीं ... हां, सामने मदीना ही था। नाना मुहम्मद का मदीना। जैनब की आँखों भर आयीं, लेकिन रोना किसलिए ?
बग़ल वाले महमिल का पर्दा उठाये कुलसूम का मर्सिया झांक रहा था :
ऐ नाना के मदीने,
हमें स्वीकार न कर
हमें स्वीकार न कर क्योंकि हम गये थे तो गोदें भरी थीं
और लौटे हैं तो गोदें वीरान हैं ......
एक तरफ़ से मदीना आ रहा था। दूसरी तरफ़ से जैनब का कारवां बढ़ रहा था ... और यादों का दर्द बढ़ता जा रहा था। वह कुछ कैसे बता पायेगी ?........
इस कहानी का शेष भाग राही विशेषांक में पढ़े http://rahimasoomraza.blogspot.com/2008/10/blog-post_7125.html इस पर क्लिक करें .
No comments:
Post a Comment