- राही मासूम रजा
मीर जामिन अली बड़े ठाठ के जमींदार थे। जमींदारी बहुत बड़ी नहीं थी। परन्तु रोब बहुत था। क्योंकि दख्ल और बेदख्ली का जादू चलाने में उन का जवाब नहीं था।
मीर साहब ने उस्ताद लायक अली से गाने के सबक लिये थे और ईमान की बात यह है कि खूब गाते थे। संगीत उनके गले में उतरा हुआ था। बड़ी-बड़ी मशहूर गानेवालियां महफिल में उन्हें देख लेतीं तो कान छूकर । गाना शुरू करती। बड़ी चांदी जैसी गानेवाली का शिकार ही उन्होंने रसीली आवाज से किया था, वरना कहां खलिसपुर के ठाकुर साहब कहां मीर जामिन अली। बड़ी चांदी उनकी आवाज पर मर मिटी थी । परन्तु जब वह असमियों को गाली देते तो उनकी आवाज का रूप..........
इस कहानी का शेष भाग राही विशेषांक में पढ़े http://rahimasoomraza.blogspot.com/2008/10/blog-post_7125.html इस पर क्लिक करें .
मीर जामिन अली बड़े ठाठ के जमींदार थे। जमींदारी बहुत बड़ी नहीं थी। परन्तु रोब बहुत था। क्योंकि दख्ल और बेदख्ली का जादू चलाने में उन का जवाब नहीं था।
मीर साहब ने उस्ताद लायक अली से गाने के सबक लिये थे और ईमान की बात यह है कि खूब गाते थे। संगीत उनके गले में उतरा हुआ था। बड़ी-बड़ी मशहूर गानेवालियां महफिल में उन्हें देख लेतीं तो कान छूकर । गाना शुरू करती। बड़ी चांदी जैसी गानेवाली का शिकार ही उन्होंने रसीली आवाज से किया था, वरना कहां खलिसपुर के ठाकुर साहब कहां मीर जामिन अली। बड़ी चांदी उनकी आवाज पर मर मिटी थी । परन्तु जब वह असमियों को गाली देते तो उनकी आवाज का रूप..........
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