Friday, November 28, 2008

कविता

राही मासूम रजा

इतवार का दिन है
सुबह होने वाली है
छावनी के बगलों का
जहन खाली खाली है

गोरी मेम साहब को
आज काले हाथों ने
चाय भी नही दी है
बात यह नई सी है

इक अजब वैहशत है
चाय के प्यालों में
हर तरफ है बेचैनी
खौफ है ख्यालों में

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