Tuesday, November 25, 2008

पहली किरण 2

राही मासूम रज़ा


दिल की एक इक धड़कन
ढूढ़ती है फ़रदा को
बेड़ियों से क्या डरना
आरजू को समझा दो

जहनों दिल की राहों पर
कारवां से चलते हैं
रंग-ओ-नूर-ओ निकहत के
कुछ चिराग जलते हैं

बेड़ियों के सहरा में
फूल भी हैं कांटे भी
दोपहर के भाले भी
बादलों के गाले भी

कल की सारी तैयारी
आज की कयामत भी
आनेवाले फरदा की
वे मिसाल जन्नत भी

1 comment:

Udan Tashtari said...

आभार राही मासूम रज़ा जी की इस प्रस्तुति का.