राही मासूम रज़ा
आंसू की हर बूंद को अपने शीशा-ए-दिल में रखना होगा
वक्त आयेगा जब तो इनसे बर्क़-ओ- शरर(बिजली और अंगारे)तख्लीक़(जन्म देना)करेंगे
आंखों में गुस्से की सुरखी एक बड़ी नेमत है रफ़ीको
इससे अंधेरी रात में हम तुम एक सहर तख्लीक़ करेंगे
इज्ज़त के अमृत का प्याला पीने वाले बहुतेरे हैं
ज़िल्लत के इस ज़हर का ज़हर का प्याला पी लेना आसान नहीं है
2 comments:
manmohan jee pee rahe hain naa. narayan narayan
भाई साहब,
अच्छा रू-ब-रू करा रहें हैं आप डॉ॰ साहब से. बेहतरीन बात है इस शेर में. क्या कहना !
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