यह आदमी की गुजरगाह!का शेष भाग 9
दमड़ी का सेनुर महँग भयल बाबा
चुनरी भयल अनमोल
ए ही रे सेनुरवा के कारन बाबा
छोड़ लौं मैं देस तुहार
डोलिया का बाँस पकड़े रोयें बीरन भैया
बहना मोरी दूर देसी भई
परदेसी भई
कौन लगइहै बजरिया में आखिर
वीरन के अँसुअन का मोल रे बाबुल चुनरी भयल अनमोल
मगर न कोई सहेली न ढोल और न गीत
कहार ही हैं न डोली न कोई बीरन है
न समधिनें हैं न मासूम गालियाँ ही हैं
यह गाँव आज से बेवा है या सुहागन है
चलूँ यहाँ से कि ऐ मेरे डूबते हुए
दिल यहाँ पे सुबह न मालूम कितनी दे में हो
मगर कुरेद लू शायद कोई शरार (अंगारा) अभी
यह जिन्दगी की चिता है कि ढेर में हो
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