Tuesday, December 16, 2008

अँधेरे में

यह आदमी की गुजरगाह!का शेष भाग 10




अँधेरे में छिपी हुई हवा की साँय-साँय में
दबी-दबी सी गुफ्तगू घुटी-घुटी शिकायतें
हर एक लफ्ज एक कराह, एक ठंडी साँस है
न जाने कौन लोग हों न जानें किस तरह मिलें
मेरे खयाल को जो साँप डस रहा है देर से
न जाने उस सवाल पर ये रो पड़ें कि हेस पड़ें

आजा री निंदिया तू आ क्यों न जा
राजा को मेरे सुला क्यों न जा
आती हू बीबी मैं आती हूं
राजा को तोरे सुलाती हूं
आजा री निंदिया तू आ क्यों न जा
राजा को मोरे सुला क्यों न जा

मेरे भैया कहाँ हैं बुलाओ साथ मेरे इन्हें भी सुलाओ
हम अकेले भला कैसे सोयों हम न सोयेंगे लोरी न गाओ

आजा री निंदिया तू आ क्यों न जा
राजा को मोरे सुला क्यों न जा
आजा री निंदिया पलकियन में
आ मोरे चन्दा की अँखियन में

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