Tuesday, December 9, 2008

यह आदमी की गुजरगाह!

यह आदमी की गुजरगाह!का शेष भाग 1 (7)




गोरी सुन ले अरजिया हमार गगरिया छलकत वाले ना
घरवा तक ना चीन्हूं पै पितबउ चोरवन का हौ जोर
गुण्डा छेंक के बैठल बाडन तोहरे घर का मोड़
चुल्लू भर हम हूं पी लें का बिगड़ी हो तोहार
बरनवा झलकत बाले ना
गोरी सुन ले अरजिया हमार गगरिया छलकत वाले ना

छलक रही है न गागर, भड़क रही है न प्यास
न चोर ही हैं न गुण्डे ही छुपके बैठे हैं
बस इक महीब खमोशी जमीं से ता बा फ़लक़
मगर निशाने - क़दम यह कुछ अजनबी से हैं

बता सुलगते हुए गाँव, तू ही बतला
झिझक-झिझक के गुजरती हवा तू ही कुछ बोल
किसी कराह, किसी चीख का सुराग़ मिले
सुलगती लाशों से महकी फ़िजा, तू ही कुछ बोल

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