कहीं अब्रू पे हैं महराबे इबादत के शिकन
कहीं मिम्बर (इमाम) की जुबाँ पर है बगावत के सुखन (क्रांति की बातें)
कहीं आवाजें अजाँ में हैं वह पैगामे दुहुल (संवाद देने वाले ढोल)
सुनके जिनको सफेदा (नमाजी) में पड़ी है हलचल
कहीं मीनारों पे दुश्मन के लिए दारे हैं
कहीं तकबीर में तलवार की झंकारें हैं
गैज (क्रोध) में कौसरो-तस्नीम (स्वर्ग-मुख) के अफ़साने कहीं
घेरा डाले हुए तस्बीह के सौ दाने कहीं
उबले पड़ते हैं वह सिजदे के निशानों को है जोश
खानकाहों (आश्रम) की खमोशी भी है तूफांबदोश (तूफानी रात)
कहीं फारां (एक पहाड़) से फरहरे की हवा आती है
कहीं कैलाश से डमरू की सदा आती है
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