Wednesday, December 10, 2008

नेहरूः एक प्रतिमा

- राही मासूम रजा
इन दिनों नेहरू को बुरा-भला कहने का फैशन चल पड़ा है। श्री जगजीवन राम के सिवा लगभग सारी जनता का यही ख़याल हो गया है कि नेहरू बिलकुल बेकार आदमी थे। गृहमंत्री श्री चरणसिंह, का तो यह कहना है कि नेहरू ऐसे थे कि उनके हिंदुस्तानी होने पर हमें शरमाना चाहिए। मेरी ख़ाल ज़रा मोटी हैं। जब मैं चौधरी चरणसिंह के होने पर नहीं शरमाता, तो नेहरू के होने पर क्या शरमाऊंगा। यह तो सुना था कि बाप के पाप बेटे के घर आते है, पर यह नहीं सुना था कि बेटी के किये की सजा बाप को भुगतनी पड़ती है। किस्सा कुर्सी का चाहे जो कुछ हो , परन्तु किस्सा नेहरू का यही है हम लोग या तो शंकराचार्य बन कर जीते हैं या महमूद ग़जनवी बन कर। हम या बुत बनाते हैं, या बुत तोड़ते हैं। किसी बुत प्रमिमा की खूबसूरती देखने के लिए रुकते नहीं पल भर। मैं नेहरू के बुत की पूजा नहीं करता...पर मैं महमूद ग़जनबी भी नहीं हूं। इसलिए मैं उस बुत को तोड़ना भी नहीं चाहता। हमारे इतिहास के रास्ते को सजाने के लिए यह बुत बड़ा खूबसूरत है, यात्री हवाई अड्डे से किसी फाइव स्टार होटल जाते हुए उसे देखने के लिए पल भर टिकेंगे।
होश संभालने से पहले मुझे पता ही नहीं था कि जवाहरलाल नेहरू क्या चीज है, होश संभाला, तो अपने आपको उनका विरोधी पाया और जैस-जैसे होश संभलता गया वह विरोध बढ़ता गया। पर पंडित नेहरू के मरने पर मैं रोया भी, और उनके मरने पर मैंने एक कविता भी लिखी, शीर्षक है........
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1 comment:

Zubair Shadab said...

bahut khub bhai. ap ki koshisheN hamesha rash amez lagti haeN.RAHI par ap ne bahu se ziyada mawaad ikattha kar rakha hae.ap mubarak baad ke mustahiq haeN.