- डॉ० मेराज अहमद
सन् १९२७ का वर्ष जब कि, एक तरफ राष्ट्रीय आन्दोलन अपनी तीव्रता पर था, दूसरी तरफ साम्प्रदायिकता की अग्नि पूर्ण रूप से प्रज्ज्वलित हो चुकी थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में जिला गाजीपुर उत्तर प्रदेश के बुधही नामक गाँव में सैयद मासूम रजा का जन्म हुआ। बुधही मासूम रजा के मातृ पक्ष का गाँव था। ददिहाल के गाँव का नाम गंगौली है जो कि ग़ाजीपुर शहर से लगभग १२ किमी० की दूरी पर स्थित है, वास्तव में मासूम रजा के दादा आजमगढ़ स्थित ठेकमा बिजौली नामक गाँव के निवासी थे। दादी गंगौली के राजा मुनीर हसन की बहन थी। अपने दुहाजू पति यानी कि मासूम के दादा के साथ गंगौली में बस गयी। तदोपरान्त धीरे-धीरे परिवार में गंगौली का रंग रचता-बसता गया। मासूम रजा की निगाहें गंगौली में ही खुली ठेकमा बिजौली से कोई सम्बन्ध न रहा।
मासूम रजा के पिता श्री बशीर हसन आब्दी ग़ाजीपुर जिला कचहरी के प्रसिध्द वकील थे इसलिए पूरे परिवार का रहना-सहना और शिक्षा-दीक्षा वहीं हुई, परन्तु मुहर्रम और ईद के द्वारा आब्दी परिवार मजबूरी के साथ गंगौली से जुड़ा हुआ था। श्री बशीर हसन आब्दी के वर्षों तक गाजीपुर में एक ख्याति प्राप्त अधिवक्ता के रूप में कार्य करने के कारण परिवार में सुख वैभव की कोई कमी नही इस लेख का शेष भाग राही विशेषांक में पढ़े.... http://rahimasoomraza.blogspot.com/2008/10/blog-post_7125.html इस पर क्लिक करें .और जानकारी प्राप्त करें.
सन् १९२७ का वर्ष जब कि, एक तरफ राष्ट्रीय आन्दोलन अपनी तीव्रता पर था, दूसरी तरफ साम्प्रदायिकता की अग्नि पूर्ण रूप से प्रज्ज्वलित हो चुकी थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में जिला गाजीपुर उत्तर प्रदेश के बुधही नामक गाँव में सैयद मासूम रजा का जन्म हुआ। बुधही मासूम रजा के मातृ पक्ष का गाँव था। ददिहाल के गाँव का नाम गंगौली है जो कि ग़ाजीपुर शहर से लगभग १२ किमी० की दूरी पर स्थित है, वास्तव में मासूम रजा के दादा आजमगढ़ स्थित ठेकमा बिजौली नामक गाँव के निवासी थे। दादी गंगौली के राजा मुनीर हसन की बहन थी। अपने दुहाजू पति यानी कि मासूम के दादा के साथ गंगौली में बस गयी। तदोपरान्त धीरे-धीरे परिवार में गंगौली का रंग रचता-बसता गया। मासूम रजा की निगाहें गंगौली में ही खुली ठेकमा बिजौली से कोई सम्बन्ध न रहा।
मासूम रजा के पिता श्री बशीर हसन आब्दी ग़ाजीपुर जिला कचहरी के प्रसिध्द वकील थे इसलिए पूरे परिवार का रहना-सहना और शिक्षा-दीक्षा वहीं हुई, परन्तु मुहर्रम और ईद के द्वारा आब्दी परिवार मजबूरी के साथ गंगौली से जुड़ा हुआ था। श्री बशीर हसन आब्दी के वर्षों तक गाजीपुर में एक ख्याति प्राप्त अधिवक्ता के रूप में कार्य करने के कारण परिवार में सुख वैभव की कोई कमी नही इस लेख का शेष भाग राही विशेषांक में पढ़े.... http://rahimasoomraza.blogspot.com/2008/10/blog-post_7125.html इस पर क्लिक करें .और जानकारी प्राप्त करें.
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