- राही मासूम रजा
ख़लीक़ अहमद बूआ बड़े मजे की चीज थे, साड़ी बांधे, नोकदार अंगिया पहने, जूड़े में फूल टिकाये, पायल बजाते निकलते तो राह चलते इधर-उधर देखने लगते, क्योंकि उनसे सभी घबराते थे। क्या पता कब किसे क्या कह दें! बड़े मुंहफट आदमी थे। और रुस्तम खां की बेवफ़ाई के ख्याल और मौत के सिवा किसी से नहीं डरते थे।
उन्हें देखते ही कोई बच्चा नारा लगाता : ख़लीक़ अहमद बूआ मर गयीं।'' और यह शुरू हो जाते। अरे मरे तै। मेरे तेरे होते सोते...... रंडी के जने की जबानें देखत जाव लोग....''
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