Thursday, December 11, 2008

शाम से पहले डूब न जाये सूरज

डॉ० राही मासूम रजा

अभी कोई तीन-चार दिन पहले मैं श्री चंद्रकांत की किताब उपन्यास स्थिति और गति' पढ़ रहा था। श्री चंद्रकांत ने जगह-जगह मुझे मासूर रजा मियां, लिखा है। मुझे यह बात बहुत बुरी लगी। उन्होंने मुझ पर यह इल्जाम भी लगाया है कि मैं गंगौली के प्यार में बह गया हूँ। और उन्होंने सवाल किया है कि अलीगढ़ की सईदा अब क्या सोचने लगी है? तन्नू और सद्दन की संतानें भारत के प्रति क्या सोच रही है? हिंदू-मुसलमान संबंध केवल गंगौली की मिट्टी से प्यार करने वाली जनता पर कितना निर्भर है?
चंद्रकांत साहब से जिंदगी को इकहरी मान लेने की भूल हुई है और इसी लिए उन्हें इन सवालों ने परेशान किया। मैं एक उपन्यास लिख रहा था। इंटरव्यू नहीं दे रहा था कि आपके हर सवाल का जवाब देना जरूरी होता। मैं खुद अपने सवालों से परेशान था और चंद्रकांत साहब ने उन सवालों पर ध्यान देने का कष्ट ही नहीं उठाया है। मेरा सवाल यह नहीं है कि मैं गंगौली का हूं या आजमगढ़ का? मेरा सवाल यह है कि यदि महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मन्दिर की मूर्ति तोड़ी थी, तो उसकी सजा मैं क्यों भुगतूं? यदि औरंगजेब ने एक मन्दिर तोड़ कर ज्ञानवापी की मसजिद बनवायी थी, तो उसमें मेरे घर की दीवारों का क्या कुसूर है। जिन्होंने पाकिस्तान की मांग की, क्या केवल वही मुजरिम हैं या कुछ न कुछ जिम्मेदार वह लोग भी हैं, जिन्होंने उस मांग को मान लिया, हमारे नेहरू, हमारे पटेल,हमारे मोरारजी, हमारे चरण सिंह-क्या यह लोग बेदाग छूट जायेंगे? इस लेख का शेष भाग राही विशेषांक में पढ़े.... http://rahimasoomraza.blogspot.com/2008/10/blog-post_7125.html इस पर क्लिक करें .और जानकारी प्राप्त करें.

1 comment:

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

सवाल यह है कि यदि महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मन्दिर की मूर्ति तोड़ी थी, तो उसकी सजा मैं क्यों भुगतूं? यदि औरंगजेब ने एक मन्दिर तोड़ कर ज्ञानवापी की मसजिद बनवायी थी, तो उसमें मेरे घर की दीवारों का क्या कुसूर है।

आपके इस सवाल के साथ हम सब हैं....असल में जो सच्चे लोग हैं वो सच्चे सवालों पर सवाल नहीं उठाते....!!