वह फिर खामोश है फिर भी कुछ नहीं कहती
बस उसके हाथ में आँचल उठा ही रहता है
वह सर कि जिसमें है ममता की अजमतों (कविता) का गुरूर
वह आसमाने मुहब्बत झुका ही रहता है
माँ मैं यह पूछता हू बताओ मुझे
कौन लोग आए थे और फिर क्या हुआ
वह एक झटके से पीछे कि सिम्त मुड़ती है
मैं जानता हू कि क्या दिखा रही है मुझे
वह धुआँ है, वहाँ लाशें हैं, तबाही है
मैं जानता हू कि वह क्या बता रही है मुझे
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