- मूलचन्द सोनकर
डॉ० नामवर सिंह ने जोधपुर यूनिवर्सिटी के हिन्दी एम०ए० के पाठ्यक्रम के लिये डॉ० राही मासूम रजा के उपन्यास आधा गाँव को निर्धारित किया था। यह सन् १९७१ की बात है। इस बात का इतना तीव्र विरोध हुआ कि इस उपन्यास को अगले ही वर्ष पाठ्यक्रम से हटाना पड़ा। डॉ० सूरज पालीवाल ने अपने लेख आधा गाँव और जोधपुर१ में इस पर विस्तार से चर्चा किया है। आधा गाँव को पाठ्यक्रम में चुनने के औचित्य पर समर्थन के लिये डॉ० नामवर सिंह ने अनेक साहित्यकारों को पत्र लिखे थे। उन्हें समर्थन भी मिला, पर अपर्याप्त। इस लेख के अनुसार आधा गाँव पर दो आरोप थे - अश्लील है और साम्प्रदायिक है। रामविलास शर्मा जी की प्रतिक्रिया थी, साम्प्रदायिक तो नहीं है, पर अश्लील है। विश्वविद्यालय में पढ़ाये जाने लायक नहीं है।
अब्दुल बिस्मिल्लाह ने अपने लेख एक नया गवाक्ष खोलती राही की भाषा'२ में यह बताया है कि उनका उपन्यास झीनी झीनी बीनी चदरिया धारवाड़ में कर्नाटक यूनिवर्सिटी में एम०ए० के कोर्स में लगा हुआ है। इस उपन्यास में भी गालियों का प्रयोग हुआ है। चन्द्रदेव यादव के साथ बातचीत करते हुए उनके एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि अमृतलाल नागर ने झीनी झीनी बीनी चदरिया की समीक्षा हिन्दी की नई पीढ़ी अब बालिग हो गयी है' शीर्षक से की थी। उसमें नागर जी का कथन है कि राही मासूम रजा ने जो गालियाँ लिखी हैं वह लगता है कि जानबूझकर लिखी गयी हैं, लेकिन इसमें जानबूझकर ऐसा नहीं किया है।'३
यद्यपि अब्दुल बिस्मिल्लाह नागर जी से सहमत नहीं हैं और यह कहते हुए हो सकता है कि यह मेरी झूठी तारीफ हो, लेकिन मैं इसे तारीफ नहीं मानता। राही साहब ने जान बूझकर गालियों का प्रयोग नहीं किया है। उसमें प्रयुक्त गालियाँ बिलकुल स्वाभाविक हैं। नागर जी का यह कथन मुझे पसन्द नहीं आया था'' उन्हें खारिज भी करते हैं लेकिन यह दो बड़े साहित्यकारों का एक ही तरह के प्रकरण में सर्वथा विरोधी दृष्टिकोण है, इसलिये अब्दुल बिस्मिल्लाह की असहमति के बावजूद इसे खारिज नहीं किया जा सकता। इस आलेख में डॉ० राही मासूम रजा के कुछ उपन्यासों को केन्द्र में रख कर मुख्य रूप से दो सवालों पर चर्चा करने का प्रयास……इस लेख का शेष भाग राही विशेषांक में पढ़े.... http://rahimasoomraza.blogspot.com/2008/10/blog-post_7125.html इस पर क्लिक करें .और जानकारी प्राप्त करें.
डॉ० नामवर सिंह ने जोधपुर यूनिवर्सिटी के हिन्दी एम०ए० के पाठ्यक्रम के लिये डॉ० राही मासूम रजा के उपन्यास आधा गाँव को निर्धारित किया था। यह सन् १९७१ की बात है। इस बात का इतना तीव्र विरोध हुआ कि इस उपन्यास को अगले ही वर्ष पाठ्यक्रम से हटाना पड़ा। डॉ० सूरज पालीवाल ने अपने लेख आधा गाँव और जोधपुर१ में इस पर विस्तार से चर्चा किया है। आधा गाँव को पाठ्यक्रम में चुनने के औचित्य पर समर्थन के लिये डॉ० नामवर सिंह ने अनेक साहित्यकारों को पत्र लिखे थे। उन्हें समर्थन भी मिला, पर अपर्याप्त। इस लेख के अनुसार आधा गाँव पर दो आरोप थे - अश्लील है और साम्प्रदायिक है। रामविलास शर्मा जी की प्रतिक्रिया थी, साम्प्रदायिक तो नहीं है, पर अश्लील है। विश्वविद्यालय में पढ़ाये जाने लायक नहीं है।
अब्दुल बिस्मिल्लाह ने अपने लेख एक नया गवाक्ष खोलती राही की भाषा'२ में यह बताया है कि उनका उपन्यास झीनी झीनी बीनी चदरिया धारवाड़ में कर्नाटक यूनिवर्सिटी में एम०ए० के कोर्स में लगा हुआ है। इस उपन्यास में भी गालियों का प्रयोग हुआ है। चन्द्रदेव यादव के साथ बातचीत करते हुए उनके एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि अमृतलाल नागर ने झीनी झीनी बीनी चदरिया की समीक्षा हिन्दी की नई पीढ़ी अब बालिग हो गयी है' शीर्षक से की थी। उसमें नागर जी का कथन है कि राही मासूम रजा ने जो गालियाँ लिखी हैं वह लगता है कि जानबूझकर लिखी गयी हैं, लेकिन इसमें जानबूझकर ऐसा नहीं किया है।'३
यद्यपि अब्दुल बिस्मिल्लाह नागर जी से सहमत नहीं हैं और यह कहते हुए हो सकता है कि यह मेरी झूठी तारीफ हो, लेकिन मैं इसे तारीफ नहीं मानता। राही साहब ने जान बूझकर गालियों का प्रयोग नहीं किया है। उसमें प्रयुक्त गालियाँ बिलकुल स्वाभाविक हैं। नागर जी का यह कथन मुझे पसन्द नहीं आया था'' उन्हें खारिज भी करते हैं लेकिन यह दो बड़े साहित्यकारों का एक ही तरह के प्रकरण में सर्वथा विरोधी दृष्टिकोण है, इसलिये अब्दुल बिस्मिल्लाह की असहमति के बावजूद इसे खारिज नहीं किया जा सकता। इस आलेख में डॉ० राही मासूम रजा के कुछ उपन्यासों को केन्द्र में रख कर मुख्य रूप से दो सवालों पर चर्चा करने का प्रयास……इस लेख का शेष भाग राही विशेषांक में पढ़े.... http://rahimasoomraza.blogspot.com/2008/10/blog-post_7125.html इस पर क्लिक करें .और जानकारी प्राप्त करें.
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