यह आदमी की गुजरगाह!का शेष भाग
चुप होके लेट जाने से क्या नींद आएगी
मेरी भी कोई माँ है जो लोरी सुनाएगी
सुन लो, यह माँ हूँ, कोई फिरंगी नहीं हू मैं
बस मौत मेरे जख्म पे मरहम लगाएगी
यह उजड़ी गोद लेके जियूँ भी तो क्या जियूँ
खुद अपनी गोद देखके अब शर्म आएगी
बच्चों जैसी न बातें करो तुम
सब्र कर लो कि चारा नहीं है
गाँव में उन दरख्तों के ऊपर
सिर्फ बेटा तुम्हारा नहीं है
है फिरंगी का शायद खुदा भी
अब खुदा भी हमारा नहीं है
बोझ तो है जईफी (बुढ़ापा) का
सर पर और कोई सहारा नहीं है
दूर तक आसमाँ पर सियाही
दूर तक कोई तारा नहीं है
आँसुओं का नमक जिसको भर दे
जख्म ऐसा हमारा नहीं है
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