क्या मैं रस्ता भूल गया हूं
उठता सूरज सोच रह है
क्या मैं रोज यहीं आता था
क्या वह वही प्यारी दुनिया है
मुर्दों के बाजार सजे हैं
लाशों का खलियान लगा है
खेतों के लब सूख रहे हैं
दरिया का चेहरा उतरा है
मैं इक टूटे से मंदिर में
बरगद की इक जड़ पर बैठा
जाने कब से सोच रहा हूं
वह बच्चा अब जागा होगा
माँ कैसे बहलाती होगी
माँ कैसे समझाती होगी
2 comments:
माँ कैसे बहलाती होगी
माँ कैसे समझाती होगी
वाह जी वाह आनन्द आ गया
क्या मैं रस्ता भूल गया हूं
उठता सूरज सोच रह है
क्या मैं रोज यहीं आता था
क्या वह वही प्यारी दुनिया है
भावपूर्ण .. आनन्द आ गया.
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